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Chapter 1
Bihar board class 10 Sanskrit Solutions
मंगलम (उपनिषद )
1. हिरणमयेन पात्रेण सत्यस्यापिहित मुखम ।
तवम पुषान्नापावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ।।
अर्थ :- हे प्रभु! सत्य का मुख सुनहरे आवरण से ढका हुआ है। अतः सत्य धर्म की प्राप्ति के लिए मन से मोह-माया का त्याग आवश्यक है, तभी सत्य के दर्शन संभव हैं।
2. अणोरणीयान महतो महीयान,
आत्मस्य जनतोनिर्हितो गुहायाम ।
तमक्रन्तु पश्यति वितिशोको,
धातुप्रसा दान्माही मानमात्मन ।
अर्थ: प्राणियों के हृदय रूपी गुहा में अणु से भी अधिक सूक्ष्म और महान आत्मा निवास करती है। उस परम सत्य के केवल दर्शन से ही जीव शोक से मुक्त होकर परमात्मा में लीन हो जाता है।
3. सत्यमेव जयते नानृतम,
सत्येन पन्या विततो देवयान ।
येनाक्रमन्तसुषयो हह्याप्तकामा,
यत्र तत्र सत्यस्य पर निधानम ||
अर्थ: "सत्य की सदा विजय होती है, असत्य की कभी नहीं। सत्य के पवित्र मार्ग पर चलकर ही मनुष्य परमपिता परमेश्वर तक पहुँच सकता है। यह सत्य मार्ग विशाल, पावन और दिव्य है, जिस पर चलकर ऋषि-मुनियों ने परमात्मा की प्राप्ति की। वही सनातन सत्य मार्ग, जिसका ऋषियों ने अनुशासनपूर्वक पालन किया, आत्मिक उन्नति और ईश्वर-प्राप्ति का एकमात्र सच्चा साधन है।"
4. यथा नधम स्यन्दमाना समुद्रे,
डक्तम गछन्ति नामरूपे विहाय ।
तथा विद्वानम नामरुपाद विमुक्त,
परात्यर पुरुषमुपैति दिव्यं ।
अर्थ :- "जिस प्रकार बहती हुई नदी समुद्र में मिलकर अपना अलग अस्तित्व खो देती है और समुद्र का ही अंग बन जाती है, उसी प्रकार जब जीवात्मा परमपिता परमेश्वर के दिव्य प्रकाश में लीन होती है, तब वह अपने नाम-रूप के बंधन से मुक्त होकर परमात्मा में विलीन हो जाती है।"
5. वेदाहमेतम पुरुषम महानतम,
आदित्यवर्णम तमस परस्तात ।
तमेव विदित्वति मृत्युमेती,
नान्य पन्था विधेतेडयनाय ।
वेदों में वर्णित 'आदित्यवर्ण' (सूर्य के समान तेजस्वी) परमात्मा ही परम सत्य है। बुद्धिमान व्यक्ति वेदवाणी से प्रकट उस प्रकाशमय परमब्रह्म को अपने हृदय में अनुभव करके ही संसार के बंधनों से मुक्त होते हैं, क्योंकि उस परम तत्व के अतिरिक्त मोक्ष प्राप्ति का कोई और मार्ग नहीं है।
अभ्यास-
1. एकपदेन उत्तरं वदत -
(क) हिरण्मयेन पात्रेण कस्य मुखम् अपिहितम् ?
उत्तर-सत्यस्य
(ख) सत्यधर्माय प्राप्तये किम् अपावृणु ?
उत्तर-आच्छादनम्, आवरणम्
(ग) ब्रह्मणः मुखं केन आच्छादितमस्ति ?
उत्तर- हिरण्मयेन – पात्रेण
(घ) महतो महीयान् कः ?
उत्तर-ब्रह्मः
(ङ) अणोः अणीयान् कः ?
उत्तर-ब्रह्मः
(च) पृथिव्यादेः महत्परिमाणयुक्तात् पदार्थात् महत्तरः कः ?
उत्तर-ब्रह्मः
(छ) कः पुरुषः निजेन्द्रियप्रसादेन आत्मनः महिमानं पश्यति तथा शोकरहितः भवति?
उत्तर-तमक्रतुः
(ज) किं जयं प्राप्नोति ?
उत्तर-सत्यम्
(झ) किं जयं न प्राप्नोति ?
उत्तर- असत्यम्
(ञ) के नामरूपं विहाय समुद्रे अस्तं गच्छन्ति?
उत्तर-नद्यः
2. एतेषाम् पद्यानाम् प्रथम चरणं मौखिकरूपेण पूरवत -
(क) हिरण्मयेन – पात्रेण सत्यस्यपिहितं मुखम |
(ख) अणोरणीयान् महतो महीयान् - सूक्ष्मात्सूक्ष्मतरः, महतोऽपि महत्तरः आत्मा जन्तुषु हृदयगुहायां निवसति।
(ग) सत्यमेव जयते - नानृतम सत्येन पन्था विततो देवया
(घ) यथा नदीनां प्रवाहः - स्यन्दमाना नद्यः समुद्रमेव प्रविशन्ति, तद्वत् नामरूपातीतं ब्रह्मैव गन्तव्यम्।
(ङ) वेदाहमेतं पुरुषं महान्तं आदित्यवर्णं तमसः परस्तात्।
3. एतेषां पदानाम् अर्थ वदत -
उत्तर-
अपिहितम् - ढका हुआ
सत्यधर्माय - सत्यधर्मवान के लिए
अणोरणीयान् - सूक्ष्म से सूक्ष्म
अक्रतुः - क्रम बंधन से मुक्त
वीतशोकः - शोकरहित
विततः - विस्तार होता है
देवयानः- देवता को
आप्तकामाः - "वे जिनकी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो चुकी हैं"।
स्यन्दमानाः- जाती हुई
स्यन्दमानाः- जाती हुई
अयनाय - अयनाय
4. स्वस्मृत्या काञ्चित् संस्कृतप्रार्थनां श्रावयत ।
(च) तमेव माता च पिता तमेव।
तमेव वन्धु च सखा तमेव ,
तमेव विद्या द्रविर तमेव तमेव
अभ्यास: लिखितः
एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) सत्यस्य मुखं केन पात्रेण अपिहितम् अस्ति ?
उत्तर- हिरण्मयेन पात्रेण
(ख) पूषा कस्मै सत्यस्य मुखम् अपावृणुयात् ?
उत्तर-आदित्यमण्डलस्य
(ग) कः महतो महीयान् अस्ति ?
उत्तर-ब्रह्मः
(घ) किं जयते ?
उत्तर-सत्यम्
(ङ) देवयानः पन्थाः केन विततः अस्ति ?
उत्तर- सत्यधर्मवानेन
(च) नद्यः के विहाय समुद्रे अस्तं गच्छन्ति ?
उत्तर-नामरूपेविहाय
(छ) साधकः पुरुषं विदित्वा कम् अत्येति ?
उत्तर- मृत्युम्
5. अधोलिखित उदाहरण का अनुसरण करते हुए दिए गए प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में लिखिए –
(क) सत्यस्य मुखं केन अपिहितम् अस्ति ?
उत्तरं - सत्यस्य मुखं हिरण्मयेन पात्रेण आवृतम् अस्ति।
Meaning: सत्य को प्राप्त करने के लिए मोह-माया (स्वर्णिम आवरण) को हटाना आवश्यक है।
(ख) कस्य गुहायां अणोः अणीयान् आत्मा निहितः अस्ति?
उत्तर - प्राणिनां हृदयगुहायां अणोरणीयान् आत्मा सन्निहितः।
(ग) विद्वान् कथं बन्धनात् मुक्तः सन् परात्परं पुरुषं प्राप्नोति?
उत्तर - विद्वान् नामरूपात् विमुक्तः भूत्वा परात्परम् पुरुषम् उपैति।
(घ). आप्तकामा ऋषयः केन पथा सत्यं प्राप्नुवन्ति ?
उत्तर - आप्तकाम ऋषि देवयान मार्ग से सत्य को प्राप्त करते हैं।
(ङ) विद्वान् कीदृशं पुरुषं वेत्ति ?
उत्तरं - विद्वान् नामरूपात् विमुक्तः परात्परं पुरुषं वेत्ति।
3. सन्धि-विच्छेदं कुरुत -
(क) कस्यापिहितम् :-- कस्य + अपिहितम
(ख) अणोरणीयान् :-अणोः + अणियान
(ग) जन्तोर्निहितः :- जन्तोः + निहितः
(घ) ह्याप्तकामाः :- हि + आप्राप्तकामा
(ङ) उपैति :- उप + एति
4. प्रकृति-प्रत्ययनिदर्शनं कुरुत -
(क) अपिहितम् -
(ख) निहितः -
(ग) विमुक्तः -
(घ) विहाय -
(ङ) विततः
5. समास विग्रहं कुरुत
(क) अनृतम् = न + ऋतम्
(ख) आदित्यवर्णम् = आदित्य वर्णं यस्य.
(ग) वीतशोकः
(घ) देवयानः
(ङ) नान्यः
6. रिक्तस्थानानि पूरयत -
(क).... . सत्यस्यापिहितं मुखम् ।
उत्तर- हिरण्यमेन पात्रेण |
(ख) महतो महीयान् ।
उत्तर-अणोरणीयान्, |
(ग) नानृतम् ।
उत्तर - सत्यमेव जयते |
(घ) ..व्यथा स्यन्दमानाः समुद्रे ।
उत्तर-यथा नद्यः स्यन्दमानाः |
(ङ)......... ..तमेव मृत्युमेति ।
उत्तर - तमेव विदित्वाति |
7. अधोनिर्दिष्टानां पदानां स्ववाक्येषु प्रयोगं कुरुत –
(क). सत्यम :- सत्यमेव जयते नानृतम ।
(ख). सत्यस्य :- "सत्यस्य मुखं हिरण्मयेन पात्रेण आच्छादितम्"
(ग). गच्छनिः :- ते गृहम गच्छन्ति ।
(घ). विमुक्तः : - विद्वान नाम और रूप से रहित होता है।
(ङ). अन्यः : अन्यः पन्था अयनाय न विदयते ।