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भारत माता
भारत माता

 भारतमाता (सुमित्रानंदन पंत)


कवि परिचय :-

> जन्म :- 1900 ई०
> जन्म-स्थल :- उत्तराखंड के अलमोड़ा जिले के रमणीय स्थल कौसानी
> जन्म के छह घंटे बाद ही माता सरस्वती देवी का देहांत हो गया।
> पिता गंगादत्त पंत कौसानी टी स्टेट में एकाउंटेंट थे ।
> पंतजी की प्राथमिक शिक्षा गाँव में हुई और फिर बनारस से उन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा पायी ।
> वे आजीवन इलाहाबाद में रहे।
> पंतजी छायावादी कवि है।
> पंतजी की अंतिम काव्य 'लोकायतन' है।
> पंतजी को उनकी रचना 'चिदंबरा' पर उन्हें 'भारतीय ज्ञानपीठ' पुरस्कार मिला।
> निधन :- 29 दिसंबर 1977 ई०
> प्रस्तुत कविता 'भारतमाता' उनकी कविताओं का संग्रह 'ग्राम्या' से संकलित है।


> पंतजी की प्रमुख काव्यकृतियाँ निम्नलिखित है।
1. उच्छवास
2. स्वर्णकिरण
3. ग्राम्या
4. युगांत
5. ग्रंथि
6. पल्लव
7. युगपथ
8. स्वर्णधूलि
9. युगवाणी
10. गुंजन
11. वीणा
12. चिदंबरा


कविता


प्रश्न उत्तर :-
1. कवितों के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारतमाता का कैसा चित्रप्रस्तुत करता है ? 


अथवा


संप्रसंग व्याख्या करें 

 भारतमाता ग्रामवासिनी

 खेतों में फैला है श्यामल

 धूल-भरा मैला-सा आँचल,

 गंगा-यमुना में आँसू जल

 मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी ।


उत्तर :- प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत के द्वारा रचित 'भारतमाता' शीर्षक कविता से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि भारत की आत्मा गाँवों में बस्ती है जहाँ के खेत सदा हरे भरे रहते हैं। हरियाली का यह भागे भारतमाता के आँचल के समान प्रतीत होता है । परंतु पराधीनता के कारण यह आँचल मैला हो गया है। भारतमाता अपनी दुर्दशा पर आँसू बहा रही है। उसके आँसू गंगा-यमुना जैसी नदियों में जल के रूप में बह रहे हैं और वह मिट्टी की उदास प्रतिमा बनकर चुपचाप बैठी हुई है।


2. भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है ? 
उत्तर :- भारतमाता के संतान स्वेच्छा से अपने खेतों में फसलों को भी उपजा नहीं सकते है। उन्हें अपने उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा लगान के रूप में अंग्रेजों को देना पड़ता है। इसलिए वह अपने ही घर में प्रवासिनी बनी हुई है।


3. 'भारतमाता' शीर्षक कविता में कवि भारतवासियों का कैसा चित्र खींचता है ? 
उत्तर :- 'भारतमाता' शीर्षक कविता में कवि कहते है कि भारतमाता के 30 करोड़ संतान अधनंगे, अधभूखे, शोषित, निहत्था, मूर्ख, असभ्य, अशिक्षित और गरीब है। उनका सिर झुका हुआ है और वे वृक्षों के नीचे अपना जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं।


4. भारतमाता का हास भी राहुग्रसित क्यों दिखाई पड़ता है ? 
उत्तर :- अंग्रेजो के जुल्म और अत्याचार के कारण भारतीय किसान स्वेच्छा से अपने खेतों में फसलों को भी ऊपजा नहीं सकते हैं। उनके सोने जैसी फसलों को दूसरों के पैरों के तले रौंद दिया जाता है और वह धरती के समान सहनशील बनकर उदास है। अतः कवि को भारतमाता का हास भी राहु ग्रसित दिखाई पड़ता है।


5. कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप-संयम क्यों सफल है? 
उत्तर :- कवि महात्मा गाँधी के विचारों पर आशा प्रकट करते हुए कहते हैं कि यदि हमारे देश के लोगों को अहिंसा का संदेश दिया जाए तो उनमें एकता और भाईचारे की भावना आ सकती है। वे अपनी शक्ति को पहचान सकते हैं और अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठा सकते हैं। इस प्रकार भारतमाता पुनः आजाद हो सकती है। अतः कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप-संयम सफल है।


6.सप्रसंग व्याख्या करें।


स्वर्ण-शस्य पर-पद-तल लुंठित,धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित ।
 क्रन्दन कंपित अधर मौनस्मित राहुग्रसित शरदें दुहासिनी । 


अर्थ :- प्रस्तुत पंक्ति सुमित्रानंदन पंत के द्वारा रचित भारतमाता शीर्षक कविता से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि सोने जैसी फसलों को दूसरों के पैरों के तले रौंद दिया जाता है और हमारे देश के किसान अंग्रेजों के इस जुल्म और अत्याचार को धरती के समान सहनशील बनकर सह रहे हैं। उनका मन उदास है, जिन होठो पर कभी मुस्कान हुआ करती थी वह आज रो रहा है, कॉप रहा है और मौन है। भारतमाता की मुँख की तुलना शरद-ऋतु के चंद्रमा से की जाती थी वह आज राहुग्रसित है।


7. कवि भारतमाता को गीता प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञानमूढ़ क्यों कहता है ?
उत्तर :- हमारा देश आदिकाल से विश्वगुरू रहा है। यहाँ वीरों ने जन्म लिया, यहाँ वीरों की गाथा सुनाई जाती है। यहाँ गीता जैसे महान धर्मग्रंथ की रचना हुई। परंतु हमारे देश के लोगों का अंग्रेजों के द्वारा शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक रूप से शोषण किया गया । इसलिए कवि भारतमाता को गीता प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञानमूढ़ कहता है ।