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आविन्यो
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      आवन्यों (ललित रचना) अशोक वाजपेयी


लेखक  रिचय :-

जन्म :- 16 जनवरी 1941 ई०
जन्म-स्थान :- दुर्ग, छत्तीसगढ़
मूल निवास :- सागर, मध्यप्रदेश
माता का नाम :- निर्मला देवी
पिता का नाम :- परमानन्द वाजपेयी
उनकी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट हायर सेकेण्ड्री स्कूल, सागर से हुई।
सागर विश्वविद्यालय से उन्होंने बी०ए० और सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली से अंग्रेजी में एम०ए० किया ।
उन्होंने वृत्ति के रूप में भारतीय प्रशासनिक सेवा को अपनाया।
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति के पद से सेवानिवृत हुए ।
वे दिल्ली में भारत सरकार की कला अकादमी के निदेशक थे।
अशोक वाजपेयी को साहित्य अकादमी पुरस्कार, दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, फ्रेंच सरकार का ऑफिसर ऑव द ऑर्डर ऑव क्रॉस 2004 सम्मान प्राप्त हो चुका है।
निधन :- 16 अगस्त 2015


 अशोक वाजपेयी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित है -

कविता संकलन - 
1. शहर अब भी संभावना है POR
2. एक पतंग अनंत में
3. कहीं नहीं वहीं
5. बहुरि अकेला
6. थोड़ी सी जगह
7. दुख चिट्ठीरसा है

आलोचना -

1. फिलहाल
2. कुछ पूर्वग्रह
3. समय से बाहर
4. कविता का गल्प
5. कवि कह गया है
 आविन्यों दक्षिण फ्रांस में रोन नदी के किनारे बसा हुआ एक पुराना शहर है जो कभी कुछ समय के लिए पोप की राजधानी थी। 
 हर वर्ष आविन्यों में गर्मियों में फ्रांस और यूरोप का एक अत्यंत पेय प्रसिद्ध और लोकप्रिय रंग समारोह होता है।
 पीटर ब्रुक का विवादस्पद 'महाभारत' पहले पहल प्रस्तुत किया जाने वाला था और लेखक को निमंत्रण देकर बुलाया गया था। उन्होंने वहाँ देखा कि आविन्यों से कुछ मिलोमीटर दूर पत्थरों की एक खदान में उसकी भव्य प्रस्तुति  हुई। वे कुछ दिन वहाँ ठहरे थे। कुमार गंधर्व आए थे और उन्होंने आर्कविशप के पुराने आवास के बड़े से आँगन में गाया था जिसकी एक बंदिश लेखक को आज भी याद है - दुम-दुम लता-लता ।
 रोन नदी के दूसरी ओर आविन्यों का एक और हिस्सा है जिसका नाम है वीलनव्व ल आविन्यों अर्थात् आविन्यों का नया गाँव या नई वस्ती। वहाँ फ्रेंच शासकों ने पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किला बनवाया था । उसी में कार्यूसियन संप्रदाय का एक इसाई मठ बना, जिसे ला शत्रूज के नाम से जाना जाता है।
 पीटर ब्रुक का विवादस्पद 'महाभारत' पहले पहल प्रस्तुत किया जाने वाला था और लेखक को निमंत्रण देकर बुलाया गया था। उन्होंने वहाँ देखा कि आविन्यों से कुछ मिलोमीटर दूर पत्थरों की एक खदान में उसकी भव्य प्रस्तुति हुई। वे कुछ दिन वहाँ ठहरे थे। कुमार गंधर्व आए थे और उन्होंने आर्कविशप के पुराने आवास के बड़े से आँगन में गाया था जिसकी एक बंदिश लेखक को आज भी याद है - दुम-दुम लता-लता ।
 रोन नदी के दूसरी ओर आविन्यों का एक और हिस्सा है जिसका नाम है वीलनव्व ल आविन्यों अर्थात् आविन्यों का नया गाँव या नई वस्ती। वहाँ फ्रेंच शासकों ने पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किला बनवाया था । उसी में कार्यूसियन संप्रदाय का एक इसाई मठ बना, जिसे ला शत्रूज के नाम से जाना जाता है।
आजकल उसे एक संरक्षित स्मारक बनाकर उसमें एक कला केंद्र की स्थापना की गई। यह केंद्र इन दिनों रंगमंच और लेखन से जुड़ा हुआ है।
 चौदहवीं सदी से फ्रेंच क्रांति तक उसका धार्मिक उपयोग होता रहा । क्रांति होने पर इस स्थान और यहाँ के सभी इमारतों पर स्थानीय लोगों ने कब्जा कर लिया और वे उसमें रहने लगे । कार्यूसियन संप्रदाय मौन में विश्वास करता है। इसलिए सारा स्थापत्य एक तरह से मौन का ही स्थापत्य  था।
 लेखक आविन्यों अपने साथ हिंदी का टाइपराइटर, तीन-चार पुस्तकें और कुछ संगीत भर टेप्स ले गए। वे वहाँ लगभग उन्नीस दिनों तक रहे 24 अक्टूबर से 10 नवम्बर 1994 की दोपहर तक । कुल उन्नीस दिनों में वे 35 कविताएँ और 27 गद्य की रचना की।


प्रश्न उत्तर :-

1.आविन्यों क्या है और वह कहाँ अवस्थित है ?
उत्तर :- आविन्यों दक्षिण फ्रांस में रोन नदी के किनारे वसा हुआ एक पुराना शहर है जहाँ कभी कुछ समय के लिए पोप की राजधानी थी।

2. हर बरस आविन्यों में कब और कैसा समारोह हुआ करता है ?
उत्तर :- हर बरस आविन्यों में गर्मियों में फ्रांस और यूरोप का एक अत्यंत प्रसिद्ध और लोकप्रिय रंग समारोह हुआ करता है।

3. लेखक आविन्यों किस सिलसिले में गए थे ? वहाँ  उन्होंने क्या देखा-सुना ?
उत्तर :- पीटर ब्रुक का विवादस्पद 'महाभारत' पहले पहल प्रस्तुत किया जानेवाल था और लेखक को निमंत्रण देकर बुलाया गया था। उन्होंने वहाँ देखा कि आविन्यों से कुछ मिलोमीटर दूर पत्थरों की एक खदान में उसकी भव्य प्रस्तुति हुई थी । वे कुछ दिन वहाँ ठहरे थे । कुमार गन्धर्व आए थे और उन्होंने आर्कविशप के पुराने आवास के बड़े से आँगन में गाया था जिसकी एक बन्दिश लेखक को आज भी याद है - दुमद्रुम लता-लता ।

4. ला शत्रूज क्या है और वह कहाँ अवस्थित है ? आजकल उसका क्या उपयोग होता है ?
उत्तर :- रोन नदी के दूसरी ओर आविन्यों का एक और हिस्सा है जो लगभग स्वतंत्र है। उसका नाम है- वीलनव्व ल आविन्यों अर्थात आविन्यों का नया गाँव या नई बस्ती । वहाँ फ्रेंच शासकों ने पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किला बनवाया था। उसी में कार्यूसियन सम्प्रदाय का एक ईसाई मठ बना जिसे ला शत्रूज के नाम से जाना जाता है।
आजकल उसे एक संरक्षित स्मारक बना दिया गया है एवं उसमें एक कलाकेंद्र की स्थापना की गई। यह केंद्र इन दिनों रंचमंच और लेखन कार्य से जुड़ा हुआ है । रंग कर्मी, रंगसंगीतकार, अभिनेता, नाटककार आदि वहाँ आते हैं और पुराने ईसाई सन्तों के चैम्बर्स में कुछ अवधि के लिए रहकर सारा समय अपना रचनात्मक काम करने में बिताते हैं।

5. लेखक आविन्यों क्या साथ लेकर गए थे और वहाँ कितने दिनों तक रहे ? लेखक की उपलब्धि क्या रही ?
उत्तर :- लेखक आविन्यों अपने साथ हिन्दी का टाइपराइटर, तीन-चार पुस्तकें और कुछ संगीत के टेप्स भर ले गए थे। वे वहाँ कुल उन्नीस दिन, 24 अक्टूबर से 10 नवम्बर 1994 की दोपहर तक रहे। कुल उन्नीस दिनों में उन्होंने पैंतीस कविताएँ और सत्ताईस गद्य की रचना किए।

6. नदी और कविता में लेखक क्या समानता पाता है ?
उत्तर :- नदी और कविता में लेखक काफी समानता पाता है । नदी और कविता दोनों ही युग-युग से मनुष्य का साथी है। जिस प्रकार नदी कभी जल रिक्त नहीं होती ठीक उसी प्रकार कविता कभी शब्द रिक्त नहीं होती है। नदी में अनेक स्त्रोतों से जल आकर विलिन हो जाते है उसी प्रकार कविता में भी तरह-तरह के चित्र, भंगिमाएँ, जीवन-छवियाँ आकर मिलती रहती है।

7. नदी तट पर बैठे लेखक को क्या अनुभव होता है ?
उत्तर :- नदी तट पर बैठे हुए लेखक को अनुभव होता है कि नदी के तट पर बैठना एक तरह से नदी के साथ बहने जैसा है। कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि नदी का जल स्थिर है और तट ही बह रहा है। नदी तट पर बैठना भी नदी के साथ बहना है।

8. नदी तट पर लेखक को किसकी याद आती है और क्यों ?
उत्तर :- नदी तट पर लेखक को कवि विनोद कुमार शुक्ल की याद आती है क्योंकि उन्होंने अपनी एक कविता में नदी-चेहरा लोगों से मिलने जाने की बात कहते हैं। नदी तट पर रहने वाले लोग नदी-चेहरा हो जाते हैं।