> प्रेमघन जी भारतेन्दु युग के महत्त्वपूर्ण कवि थे। > जन्म :- 1855 ई० > जन्म स्थान :- मिर्जापुर, उत्तरप्रदेश > निधन :- 1922 ई० > प्रेमघन काव्य और जीवन दोनों क्षेत्रों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को अपना आदर्श मानते थे । > प्रेमघन ने 1874 ई० में मिर्जापुर में 'रसिक समाज' की स्थापना की। > प्रेमघन ने 'आनंद कादंबिनी' नामक मासिक पत्रिका तथा 'नागरी नीरद' नामक साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन किया । > वे साहित्य सम्मेलन के कलकत्ता अधिवेशन के सभापति भी रहे। > वे कलात्मक एवं अलंकृत गद्य लिखते थे । > प्रेमघन की रचनाएँ 'प्रेमघन सर्वस्व' नाम से संगृहीत है। > भारत सौभाग्य और प्रयाग रामागमन प्रेमधन के प्रसिद्ध नाटक है। > प्रेमघन ने 'जीर्ण जनपद' नामक एक काव्य लिखा जिसमें ग्रामीण जीवन का यथार्थवादी चित्रण है। > प्रस्तुत कविता 'स्वदेशी' उनकी रचनाएँ 'प्रेमघन सर्वस्व' से संकलित है। > प्रेमघन की काव्य-रचना ब्रजभाषा और अवधी में है। > प्रेमघन जी निबंधकार, नाटककार, कवि एवं समीक्षक थे । > प्रेमघन ने साम्राज्यवाद तथा सामंतवाद का विरोध किया । कविता
प्रश्न उत्तर :- 1. कवि नगर, बाजार और अर्थव्यवस्था पर क्या टिप्पणी करता है?
उत्तर :- कवि कहते हैं कि नगरों और बाजारों में केवल विदेशी वस्तुएँ ही दिखाई पड़ती है। हमारे देश के लोग देशी वस्तुओं का तिरस्कार करते हैं और विदेशी वस्तुओं का उपयोग करना गौरव की बात समझते हैं जिसके फलस्वरूप हमारे देश का सारा धन विदेश जा रहा है और हमारी घरेलू उद्योग धंधा और अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे चौपट होती जा रही है। 2. नेताओं के बारे मे कवि की क्या राय है?
उत्तर :- कवि कहते हैं कि हमारे देश के नेता लोग विलासितापूर्ण जीवन जी रहे हैं। इसलिए ये विदेशी वस्तुओं पर रोक नहीं लगाते हैं और उसकी बिक्री हेतु बढ़ावा देते है। विलासितापूर्ण जीवन जीने के कारण ऐसे नेताओं का शरीर भारी और आलसी हो गया है। इनसे अपने शरीर की धोती तक नहीं संभल पाती है और देश को संभालने की कोरी कल्पना करते हैं।
3. कवि ने 'डफाली' किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर :- कवि समाज के उस शिक्षित वर्ग को 'डफाली' कहा है जो नेताओं की झूठी प्रशंसा कर उसका मान-सम्मान बढ़ा देते हैं और विदेशी वस्तुओं की बड़ाई बढ़-चढ़कर करते हैं जिसके कारण हमारे देश के लोग विदेशी वस्तुओं को खरीदने के लिए ललायित रहते हैं । अतः कवि ने समाज के शिक्षित वर्ग को 'डफाली' कहा है। व्याख्या करें।
(क) मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहिं पहिचान ।
अर्थ :- प्रस्तुत पंक्ति प्रेमघन द्वारा रचित 'स्वदेशी' शीर्षक कविता से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि भारत के लोगों का रंग-रूप, वेश-भुषा, चाल-ढाल, रीति-रिवाज सब विदेशी रंग में ढल गया है। उसे देखकर कोई भारतीय नहीं कह सकता है।
(ख) अंग्रेजी रुचि, गृह, सकल वस्तु देस विपरीत ।
अर्थ :- प्रस्तुत पंक्ति प्रेमधन द्वारा रचित 'स्वदेशी शीर्षक कविता से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि लोगों ने अंग्रेजी सभ्यता अपना लिया, उसे विदेशी वस्तुओं से लगाव हो गया, उसका घर विदेशी हो गया अर्थात् सब कुछ घर विदेशी देश के विरुद्ध हो गया ।
4. अर्थ बताएँ ।
सबै बिदेशी वस्तु नर, गति रति रीत लखात । भारतीयता कछु न अब, भारत म दरसात ।। मनुज भारती देखि कोऊ, सकत नहीं पहिचान । मुसलमान, हिंदू किधौं, कै है ये क्रिस्तान ।।
उत्तर :- प्रस्तुत पंक्तियाँ बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' द्वारा रचित 'स्वदेशी' शीर्षक कविता से लिया गया है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते है कि पराधीनता के कारण लोगों का सोच बदल गया है। उनका रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, रीति रिवाज सब विदेशी रंग में ढल गया है। भारत में अब कहीं भी भारतीयता दिखलाई नहीं पड़ती है। भारत के मनुष्य को देखकर कोई उसे पहचान नहीं सकता है। कौन हिंदू ?, कौन मुसलमान ?, कौन ईसाई ? कोई बता नहीं सकता है।
5. कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती ?
उत्तर :- कवि कहते हैं कि पराधीनता के कारण लोगों का सोच बदल गया है। उनका रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, रीति-रिवाज सब विदेशी रंग में ढल गया है। बाजारों में केवल विदेशी वस्तुएँ ही दिखाई पड़ती है । भारतवासी अपने-आप को हिंदुस्तानी कहने से लजाते हैं। उन्हें देशी वस्तुओं से घृणा होती है। अतः कवि को भारत में भारतीयता नहीं दिखलाई पड़ती है।
6. कवि समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है और क्यों ?
उत्तर :- कवि समाज के सुविधा भोगी वर्ग की आलोचना करता है क्योंकि ये लोग विदेशी वस्तुओं के कारण ही सुविधापूर्ण जीवन जीते हैं।