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लौटकर फिर आऊँगा
लौटकर फिर आऊँगा

 लौटकर आऊँगा फिर (जीवनानंद दास)


कवि परिचय :-


  • जन्म :- 1899 ई० में निधन :- 1954 ई० में मात्र 55 साल की उम्र में इनका निधन एक मर्मांतक दुर्घटना में हुआ ।
    उस समय उनके सिर्फ छह काव्य-संकलन प्रकाशित हुए थे । झरा पालक, धूसर पांडुलिपि, वनलता सेन, महापृथिवी, सातटि तारार तिमिर और जीवनानंद दासेर श्रेष्ठ कविता ।
  • उनके अन्य काव्य संकलन रुपसी बाँग्ला, बेला अबेला कालबेला, मनविहंगम और आलोक पृथिवी निधन के बाद प्रकाशित हुए ।
  • उनके निधन के बाद लगभग एक सौ कहानियाँ और तेरह उपन्यास भी प्रकाशित हुए ।
  • 'वनलता सेन' काव्य ग्रन्थ की 'वनलता सेन' शीर्षक कविता को प्रबुद्ध आलोचकों द्वारा रवींद्रोत्तर युग की श्रेष्ठतम प्रेम कविता की संज्ञा दी गयी है।
    निखिल बंग रवीन्द्र साहित्य सम्मेलन के द्वारा 'वनलता सेन' को 1952 ई० में श्रेष्ठ काव्यग्रन्थ का पुरस्कार दिया गया था।
    प्रस्तुत कविता हिंदी कवि प्रयाग शुक्ल द्वारा भाषांतरित है।


प्रश्न उत्तर :-

1. कवि किस तरह के बंगाल में एक दिन लौटकर आने की बात करता है ?
उत्तर :-कवि वैसे बंगाल में एक दिन लौटकर आने की बात करता है जहाँ धान के लहलहाते फसल हों, जहाँ कलकल करती हुई नदियाँ बहती हों अर्थात् कवि एक बार फिर से बंगाल में जन्म लेकर वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाना चाहता है।


2. कवि अगले जीवन में क्या-क्या बनने की संभावना व्यक्त करता की संभावन है और क्यों ? 
उत्तर :- कवि को अगले जीवन में अपने मनुष्य होने में संदेह होता है। इसलिए कवि अगले जीवन में अबाबील, कौआ, हंस, उल्लू तथा सारस बनने की संभावना व्यक्त करता है क्योंकि वह एक बार फिर से बंगाल में जन्म लेकर अपनी मातृभूमि की रक्षा एंव सेवा करना चाहता है और वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाना चाहता है।


3. व्याख्या करें :-

'बनकर शायद हंस मैं किसी किशोरी का, घुँघरू लाल पैरों में, तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की ।
उत्तर :- प्रस्तुत पंक्तियाँ जीवनानंद दास द्वारा रचित 'लौटकर आऊँगा फिर' शीर्षक कविता से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि यदि मैं कौआ बनकर नहीं आया तो हंस बनकर आऊँगा और जिस प्रकार एक छोटी बच्ची अपने पैरों में घुँघरू बांधकर पानी में थिरकते रहती है ठीक उसी प्रकार मैं भी दिन-दिन भर पानी में तैरता रहूँगा और हरे-भरे घास के मैदान का आनंद उठाऊँगा ।


4. कवि जीवनानंद दास अगले जन्म में अपने मनुष्य होने में क्यों संदेह करता है ? क्या कारण हो सकता है ? 
उत्तर :- कवि 'जीवनानंद दास' अगले जन्म में अपने मनुष्य होने में संदेह करते है क्योंकि मनुष्य जीवन ईर्ष्या, छल-कपट आदि से परिपूर्ण है। लोगों की मानवता मर गई है। आपसी द्वेष के कारण जीवन पतन की ओर चला जाता है, इसलिए कवि पक्षिकुल को उत्तम मानता है।