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नाखून क्यों बढते हैं
नाखून क्यों बढते हैं

     नाखून क्यों बढ़ते हैं


लेखक परिचय :

      • द्विवेदी जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
      • निबंध-संग्रह – अशोक के फूल, कल्पलता, विचार और वितर्क,
      • कुटज, विचार-प्रवाह, आलोक पर्व, प्राचीन भारत के कलात्मक
      • विनोद
      • उपन्यास - बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचन्द्र-लेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा
      • आलोचना – सूर-साहित्य, कबीर, मध्यकालीन बोध का स्वरूप, नाथ संम्प्रदाय, कालिदास की लालित्य योजना, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, हिंदी साहित्य की भूमिका, हिन्दी
      • साहित्य : उद्भव और विकास
      • ग्रंथ संपादन – संदेशरासक, पृथ्वीराजरासो, नाथसिद्धों की बानियाँ
      • द्विवेदी जी ने कहानी विधा में कोई रचना नहीं किए है।
      • द्विवेदी जी को 'आलोक पर्व' पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला ।
      • उन्हें भारत सरकार द्वारा 'पद्म भूषण' सम्मान एवं लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट् की उपाधि मिली ।
      • वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, शांति निकेतन विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ विश्वविद्यालय आदि में प्रोफेसर एवं प्रशासनिक पदों पर रहें।
      • 1979 में दिल्ली में उनका निधन हो गया ।
      • आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 1907 ई० में आरत दुबे का छपरा, बलिया (उत्तरप्रदेश) में हुआ था।


    प्रश्न उत्तर :-

    1. नाखून क्यों बढ़ते है ? यह प्रश्न लेखक के आगे कैसे उपस्थित हुआ ? अथवा नाखून बढ़ने का प्रश्न लेखक के सामने कैसे उपस्थित हुआ ? 
    उत्तर :- जब लेखक की छोटी लड़की ने लेखक से अचानक प्रश्न कर दी कि नाखून क्यों बढ़ते हैं। तब से यह प्रश्न लेखक के आगे उपस्थित हुआ ।

    2. बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को क्या याद दिलाती है ? 
    उत्तर :- मनुष्य का नाखून लगातार बढ़ रहा है। प्रकृति मनुष्य को उसके भीतर वाले अस्त्र से वंचित नहीं कर पा रही है। बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को याद दिलाती है कि तुम्हारे नाखून को भुलाया नहीं जा सकता है। तुम वही लाख वर्ष पहले वाले नख दंतावलम्बी जीव हो जो पशु के साथ एक ही सतह पर रहते थे और विचरण करते थे ।

    3. मनुष्य बार-बार नाखूनों को क्यों काटता है ? 
    उत्तर :- आज मनुष्य को नाखून से भी कई करोड़ गुणा शक्तिशाली हथियार मिल चुका है। उसे अब इस नाखून की कोई जरुरत नहीं है। इसलिए मनुष्य बार-बार नाखूनों को काटता है।
    अथवा,
    मनुष्य नहीं चाहता है कि उसके भीतर बर्बर युग का कोई अंग अवशेष रह जाए इसलिए मनुष्य बार-बार नाखून को काटता है।

    4. नख बढ़ाना और उन्हें काटना कैसे मनुष्य की सहजात वृत्तियाँ हैं ? इनका क्या अभिप्राय है ? 
    उत्तर :- सहजात वृत्तियाँ अनजान स्मृतियों को कहते हैं। शरीर ने अपने भीतर ऐसा गुण पैदा कर लिया है जो शरीर के अनजाने में भी अपना काम करते रहता है। जैसे नाखून का बढ़ना, केश का बढ़ना, दाँत का दुबारा उठना, पलकों का गिरना इत्यादि । नाखून का बढ़ना पशुता की निशानी है और उन्हें काटना मनुष्यता की निशानी है। परंतु मनुष्य के नाखून को चाहे जितनी बार काट दो, वह मरना नहीं जानती है। अर्थात् मनुष्य में आज भी पशु का गुण मौजूद है।

    5. 'सफलता' और 'चरितार्थता' शब्दों में लेखक अर्थ भिन्नता किस प्रकार प्रतिपादित करता है? अथवा लेखक के अनुसार सफलता और चरितार्थता क्या है ? 
    उत्तर :- 'सफलता' और 'चरितार्थता' मनुष्य के जीवन के दो पहलू है। अगर कोई व्यक्ति अपने प्रयास से जो कुछ भी प्राप्त करता है अर्थात अपनी मंजिल को पा लेता है तो यह उसकी सफलता है। सफलता के लिए मनुष्यता का होना आवश्यक नहीं है। अगर कोई व्यक्ति दूसरों के सुख-दुख को अपना सुख-दुख, उसकी उन्नति को अपनी उन्नति समझता हो तो यह उसकी 'चरितार्थता' है। चरितार्थता के लिए मनुष्यता का होना आवश्यक है।

    6. लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कहाँ तक संगत है?
    उत्तर :- कुछ लाख वर्ष पहले जब मनुष्य जंगली था वनमानुष जैसा । उस समय उसे अपने जीवन रक्षा के लिए नाखून बहुत जरुरी था । उन दिनों उसे जूझना पड़ता था, एवं अपने प्रतिद्वंदियों को पछाड़ना पड़ता था जिसके लिए नाखून एक आवश्यक अंग था । अतः लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कुछ हद तक संगत है।

    7. सुकुमार विनोदों के लिए नाखून को उपयोग में लाना मनुष्य ने कैसे शुरु किया ? लेखक ने इस संबंध में क्या बताया है?
    उत्तर :- वात्सयायन के कामसूत्र से पता चलता है कि आज से दो हजार वर्ष पहले को भारतवासी अपने नाखूनों को जम के सँवारता था। उनके काटने की कला काफी मनोरंजक बताई गई है। वे अपने नाखूनों को त्रिकोण, वर्तुलाकार, चन्द्राकार, दंतुल आदि आकार में काटते थे । वे अपने नाखूनों को मोम और आलता से रगड़कर लाल और चिकना बनाते थे

    8. लेखक क्यों पूछता है कि मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है, पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर ? स्पष्ट करें।
    उत्तर :- लेखक ऐसा इसलिए पूछता है कि जहाँ नाखून का बढ़ना पशुता की निशानी है वहीं इसे काटना मनुष्यता की निशानी है । अस्त्र-शस्त्र के रूप में कारतूस, बम, तोप, एटम बम ये सभी हमारी पशुता को आगे बढ़ाने का काम किया है । इसका नवीनतम उदाहरण है, हिरोशिमा हत्याकाण्ड । अतः ये नाखून भयंकर पाशवी वृत्ति के जीवंत प्रतीक है। मनुष्य की पशुता को चाहे जितनी बार भी काट दो वह मरना नहीं जानती है।
    9. निबंध में लेखक ने किस बूढे का जिक्र किया है ? लेखक की दृष्टि में बूढ़े के कथनों की सार्थकता क्या है ?
    उत्तर :- एक बूढ़ा था । उसने कहा था- बाहर नहीं, भीतर की ओर देखो । हिंसा को मन से दूर करो, मिथ्या को हटाओ, क्रोध और द्वेष को दूर करो, लोक के लिए कष्ट सहो, आराम की बात मत सोचो, प्रेम की बात सोचो, आत्म-तोषण की बात सोचो, काम करने की बात सोचो। उसने कहा- प्रेम ही बड़ी चीज है, क्योंकि वह हमारे भीतर है। उच्छृंखलता पशु की प्रवृति है, 'स्व' का बंधन मनुष्य का स्वभाव है। बूढ़े की बात अच्छी लगी या नहीं, पता नहीं उसे गोली मार दी गई। आदमी के नाखून बढ़ने की प्रवृति ही हावी हुई । लेखक हैरान होकर सोचता है – बूढे ने कितनी गहराई में पैठकर मनुष्य की वास्तविक चरितार्थता का पता लगाया था।

    10. मनुष्य की पूँछ की तरह उसके नाखून भी एक दिन झड़ जाएँगे । प्राणिशास्त्रियों के इस अनुमान से लेखक के मन में कैसी आशा जगती है ?
    उत्तर :- प्राणिशास्त्रियों का ऐसा अनुमान है कि मनुष्य का अनावश्यक अंग उसी प्रकार झड़ जाएगा, जिस प्रकार उसकी पूँछ झड़ गई है। उस दिन मनुष्य की पुशता भी लुप्त हो जाएगी । शायद उस दिन वह मरणास्त्रों का प्रयोग भी बंद कर देगा। मनुष्य में जो घृणा है, जो अनायास-बिना सिखाए आ जाती है, वह पशुत्व का सूचक है और अपने को संयत रखना, दूसरे के मनोभावों का आदर करना मनुष्य का स्वधर्म है। अभ्यास और तप से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य की महिमा को सूचित करती हैं।

    11. देश की आजादी के लिए प्रयुक्त किन शब्दों की अर्थ मीमांसा लेखक करता है और लेखक के निष्कर्ष क्या है ?
    उत्तर :- देश की आजादी के लिए प्रयुक्त स्वाधीनता, इन्डिपेन्डेन्स और सेल्फ डिपेण्डेन्स शब्दों की अर्थ मीमांसा लेखक करता है। इन्डिपेन्डेन्स का अर्थ है अनधीनता या किसी की अधीनता का अभाव लेकिन स्वाधीनता का अर्थ है अपने ही अधीन रहना। अंग्रेजी में Self Dependence कह सकते है । भारतवर्ष ने Independence को अनधीनता के रूप में कभी भी स्वीकार नहीं किया बल्कि स्वाधीनता के रूप में स्वीकार किया। वह स्व के बंधन को आसानी से छोड़ नहीं सकता है।

    12. लेखक ने किस प्रसंग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती ? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट करें।
    उत्तर :- पुराने से चिपके रहने के संदर्भ में लेखक ने उस बंदरिया का उल्लेख किया है जो अपने मृत बच्चे को सीने से चिपकाए घूमती है। लेखक का मानना है कि ऐसी बंदरिया मनुष्य का आदर्श कभी नहीं बन सकती। वह मृत और जीवित में कोई अंतर नहीं कर सकती। लेकिन मनुष्य में चिंतन शक्ति होती है। वह सजीव और निर्जीव में अंतर कर सकता है, समझ सकता. है कि क्या उपयोगी है तथा क्या अनुपयोगी । वास्तव में पुरातन और नवीन की अच्छी बातों को ग्रहण करना तथा बेकार की बातों का त्याग करना ही मनुष्य का आदर्श है।