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जित – जित मैं निरखत हूँ
जित – जित मैं निरखत हूँ

                   जित जित मैं निरखत हूँ (पंडित बिरजू महाराज) 


लेखक परिचय :-


  •  कथक और बिरजू महाराज एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं।
  •  वे कथक के लालित्य कवि हैं।
  •  वे लखनऊ घराने के वंशज और सातवीं पीढ़ी के कलाकार हैं।
  •  इस पाठ में बिरजू महाराज की सुयोग्य शिष्या मशहूर नृत्यांगना और रंगकर्म की पत्रिका 'नटरंग' की संपादक रश्मि वाजपेयी की महाराज से बातचीत है।
  •  कथक और बिरजू महाराज एक-दूसरे के पर्यायवाची से बन गये हैं।
  •  वे कथक के लालित्य के कवि हैं।
  •  लखनऊ घराने के वंशज और सातवीं पीढ़ी के इस कलाकार में मानो सातों पीढ़ियों का सौंदर्य केंद्रीभूत हो गया है।

प्रश्न उत्तर :-


1. नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े और वहाँ किनके सम्पर्क में आए ?
उत्तर :- नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज दिल्ली में 'हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक अकादमी' नामक संस्था से जुड़े और वहाँ वे कपिला जी और लीला कृपलानी के संपर्क में आए।


2. बिरजू महाराज के गुरू कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दें। 
उत्तर :- बिरजू महाराज के गुरू उनके पिता थे, वे अपना दुःख किसी को बताते नहीं थे। वे हर वक्त किसी न किसी की मदद करने के लिए तैयार रहते थे। यह कहकर की जितना दोगे उसका दुगुना दूँगा। ऐसी उनकी अजीब आदत थी ।


3. बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुखद समय कब आया ? उससे संबंधित प्रसंग का वर्णन कीजिए। 
उत्तर :- जब बिरजू महाराज के पिता की मौत हो गई तब उनका जीवन दुखो से भर गया। वे खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने तक के मोहताज हो गए। उनके पास अपने पिता के दाह-संस्कार एवं अंतिम क्रिया कर्म करने तक के पैसे नहीं थे। वे दस दिनों के अंदर दो प्रोग्राम कर 500 रू. जमा कर अपने पिता का अंतिम क्रिया कर्म किया ।


4. कलकत्ते के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नर्तक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? 
उत्तर :- एक बार बिरजू महाराज कलकत्ते के एक कॉन्फ्रेंस में नाचे थे। उस समय कलकत्ते की ऑडियन्स ने उनकी बड़ी प्रशंसा की थी। वे तमाम अखबारों में छप गए। उसके बाद वे बड़े-बड़े शहरों में अपना प्रोग्राम देने लगे। इस प्रकार बिरजू महाराज एक जाने-माने नर्तक बन गए ।


5. अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज क्या बताते हैं ?
उत्तर :- अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज बताते है कि मात्र 18 साल की उम्र में उनकी माँ ने उनकी शादी कर दी। वह सोची की इसके पिता जी भी नहीं है और अब मैं भी बूढ़ी हो चुकी हूँ। मेरे मरने के बाद मेरे बेटे का क्या होगा, इसका ख्याल कौन रखेगा। यही सोचकर उनकी माँ ने उनकी शादी कर दी।


6. बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी माँ को क्यों मानते थे ? 
उत्तर :- बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी माँ को मानते थे। जब वे नृत्य कला का प्रदर्शन करते थे तो अपनी माँ से पूछते थे कि प्रदर्शन कैसा हो रहा है पिता जी के जैसा हो रहा है या नहीं। उनकी माँ कहती थी कि तुम अपने पिता की हीं तस्वीर हो ।


7. लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का क्या संबंध है ?
उत्तर :- 4 फरवरी 1938 की लखनऊ के जफरीन अस्पताल में बिरजू महाराज का जन्म हुआ । उनके पिता रामपुर के नवाब के यहाँ 22 वर्षों तक नौकरी किए। उनकी तीनों बहनों का जन्म रामपुर में हुआ, उनका बचपन भी रामपुर में ही बीता। इसलिए लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का गहरा संबंध है।


8. रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद क्यों चढ़ाया ?
उत्तर :- 22 वर्षों तक रामपुर के नवाब के यहाँ नौकरी करते-करते बिरजू महाराज के पिता का मन ऊब गया था। वे इस नौकरी से छूटकारा पाना चाहते थे। जब उनके बेटे के कारण उनकी नौकरी छूटी तो वे बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया ।


9. किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला ?
उत्तर :- अपने पिता और चाचा शम्भू महाराज के साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला।


10. बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा किसे और कब देनी शुरू की?
उत्तर :- बिरजू महाराज ने एक अमीर घर के लड़के सीताराम बागला को नृत्य की शिक्षा देनी शुरू की और बदले में वे उससे हाईस्कूल की पढ़ाई पढ़ लेते थे। ऐसी स्थिति तव आई जब उनके पिता की मृत्यु हो गई।


11. शंभु महाराज के साथ विरजू महाराज के संबंध पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :- शंभु महाराज और बिरजू महाराज दोनों रिश्ते से चाचा-भतीजा थे परंतु दोनों के बीच का आपसी संबंध अच्छा नहीं था। शंभु महाराज काम दिनभर खाना-पीना और घरभर को गालियाँ देना था। शंभु महाराज के दो बच्चों की मौत उसी समय हो गई थी जिस समय बिरजू महाराज के पिता की मौत हुई थी। इसलिए वे उनकी माँ डायन कहा करते थे।


12. संगीत भारती में बिरजू महाराज की दिनचर्या क्या थी ?
उत्तर :- हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक अकादमी का नाम बदलकर संगीत भारती रख दिया गया । बगैर नागा किए हुए बीमार रहने पर भी वे प्रतिदिन सुबह के चार बजे उठ जाते थे। पाँच बजे से लेकर आठ बजे तक वे संगीत भारती में रियाज करते थे । पुनः तैयार होने के लिए घर चले आते थे। नौ बजे से दो घंटे की क्लास के लिए संगीत भारती चले जाते थे । संगीत भारती में बिरजू महाराज की यही दिनचर्या थी।


13. बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे ?
उत्तर :- बिरजू महाराज नृत्य कला के दौरान आराम करने के लिए कभी गिटार, कभी सितार तो कभी हारमोनियम बजाया करते थे ।


14. बिरजू महाराज की अपने शागिों के बारे में क्या राय है?
उत्तर :- शागिर्द का अर्थ होता है - शिष्य । बिरजू महाराज अपने शागिर्दो के बारे में कहते हैं कि थोड़ा-सा नाम और थोड़ा-सा पैसा कमा लेने को ही लोग अपना कला समझने लगते हैं। थोड़ी-सी तालियाँ बटोरने के बाद वे अपने-आप को श्रेष्ठ समझने लगते हैं परंतु यह गलत है। एक शिष्य को कभी-भी अपने-आप को परिपूर्ण नहीं समझना चाहिए। इससे उसके मन में ईर्ष्या, अंहकार और लोभ जैसी बुराईयाँ पैदा हो जाती है जो उसके विनाश का लक्षण है।


15. पुराने और आज के नर्तकों के बीच बिरजू महाराज क्या फर्क पाते हैं?
उत्तर :- पुराने जमाने के नर्तक अपनी कला का प्रदर्शन खुले दिल से करते थे। उनके नाचने के लिए विशेष ताम झाम की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। जहाँ महफिल लग जाती थी वहीं नाच शुरू हो जाता था। परंतु आज के जमाने के नर्तकों को नाचने के लिए बड़े-बड़े स्टेज की आवश्यकता पड़ती है जिसमें एयर कन्डिशन और बड़े-बड़े पंखे भी लगे होते हैं।